जल-दर्पनों में देख लो 'घनश्याम-गी' मेरी!
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गझल |
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आशिक
तू दूज का है चांद, परेशानगी मेरी,
पूनम की रात देखना दीवानगी मेरी?
माशूक
खूले किंवाडा पर खडी नादानगी मेरी,
क्युं लूट कर फिर मांगते परवानगी मेरी
आशिक
मेरी नवाबियत तो ढली तेरे रूप में,
तेरे गरूर को पीला आसानगी मेरी
माशूक
मैं छूप सकी नकाबे-गुल सजा बसंत में,
पतझड की रात हो गई पहचानगी मेरी
आशिक
सहरे की रेत के मकां में खिडकी न रखना,
झोंके हवा के लायेंगे विरानगी मेरी.
शायरः
ये अश्क खुशी के है तो जमुना ही बना दो,
जल-दर्पनों में देख लो 'घनश्याम-गी' मेरी!
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Ghanshyam Thakkar
Oasis Thacker