Rajaki Ayegi Baraat [Aah 1953]
राजा की आयेगी बारात [आह १९५३]
Band-Baaja Wedding Remix बेन्ड-बाजा शादी – वाद्य-रिमिक्स
मेरे गानों का बेहतर आनंद लेने के लिये अपने कम्प्युटर को स्पीकर के साथ कनेक्ट किजिये.
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[Band-Baaja Wedding]
Ghanshyam Thakkar (Oasis)
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सारी दुनिया में शादी का अवसर मनाया जाता है. पश्चिम के देशों में शादी का समारोह अपेक्षाकृत शान्त होता है. आमतौर पर यह कुछ कुछ करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ चर्च में सोफ्ट म्युझीक के साथ मनाया जाता है. कन्या सफेद ड्रेस (!) पहनती है. पुरा समारोह एक घंटे में खतम हो जाता है. भारत की तो बात और है. यहां शादी एकसार्वजनिक मनोरंजन भी है! एक या ज्यादा दिन तक लाउड स्पीकर में फिल्मी गाने बजाये जाते है. बहुत सारे दोस्तों और रिश्तेदारों को एक से ज्यादा समय पेट भर भोजन मिलता है. और कभी कभी बेंड बाजे के साथ रास्तों पर जुलूस भी निकलता है, जिसमें वरराजा घोडे पे (या कन्वर्टीबल कार) में तशरिफ लाते हैं. कुछ साल पहले मार्चिंग बेंड के बाद्य वाले युनिफोर्म पहने हुए संगीत ग्रुप बहुत प्रचलित थे. वे लोकप्रिय फिल्म-गीतों की धून बजाते थे. बहुत सारे लोगों को मनोरंजन मिलता था. अब शिक्षित वर्ग में ऐसे बेंड नहीम बेन्ड नहीं देखने को मिलते है. ब्लु-कॉलर वर्ग नय प्र्कार के बेंड से जुलूस निकालते है, जिसमें इलेक्ट्रोनिक किबोर्ड, गायक और रिधम सेक्षन रहता है.
पहले के जमाने में संगीत के लाइव शो बहुत कम होते थे. और जब उसमें बेंड के वाद्यों का उपयोग नहीं होता था.
पश्चिमी प्रभाव के ग्रुप भी ज्यादा तक एकोर्डियन, और बोंगो-कोंगो का उपयोग करते थे. इसलिये मार्चिंग बेंड के वाद्य (क्लेरिनेट, ब्रास-होर्न, बेझ ड्रम, स्नेर ड्रम इत्यादि) सिर्फ शादी के समारोह के समय सुनने को मिलते थे. बेंडमास्टर क्लेरिनेट बजानेवाला होता था, जो गीत के शब्द के सुर बजाता था, और बाकी के होर्न पूरक संगीत देते थे. मुझे बेंड वाद्य बचपन से ही बहुत पसंद थे. हमारे छोटे गांव में बेझ ड्रम और स्नेर ड्रम वाला एक ग्रुप था. जिस को राम-ढोल कहते थे. उन लोगों के पास होर्न या वुडविंड नहीं थे, मगर ड्रम वाले नाच-कुद कर एक दो रिधम बजाते थे. मैं लकडे की खटिया पे कान लगा कर हाथ से बजाता था, तो बेझड्रम जैसी आवाझ सुनाई देती थी. हाईस्कुल में मैं बेंड में शामिल हुआ. बेझ ड्रम और स्नेर ड्रम तो मैं कोई तालिम के बिना ही बजा सकता था. मेलोडी वाद्य में सिर्फ एक सस्ती बांसुरी थी. जिस पर मैंने राष्ट्रगीत और एक दो और गीत बजाना सीखा. १९७७ में मैंने ड्रमसेट खरीद कर बिना कोई गुरु, बजाना सिखा, जो सार्वजनिक कार्यक्रमों में बहुत लोकप्रिय हुआ, और मेरा बेझड्रम/स्नेरड्रम बजाने का बचपन का सपना भी पूरा हुआ. १९९५ में जब इलेक्ट्रोनिक सिन्थेसाइअझर अपने आप सीखा, तो उस में सिर्फ ड्रम्स ही नहीं, पूरी बेंड ओर्क्रेस्ट्रा के वद्य थे. कुछ वाद्य मैंने खुद बनाये.
१९५० के दशक में ‘राजा की आयेगी बारात’ गीत शादी के बेंड में बहुत लोकप्रिय था, क्यों कि वह शादी का गीत था. आशा है आप को मेरे ‘वन मेन बेन्ड’ से उस जमाने की याद आ जायेगी.