Computer Art: Oasis Thacker
जैन धर्म में अक्सर छोटे बच्चे-बच्चियों दीक्षा ले लेते हैं. दीक्षा की विधी के पहले उनका सांसारिक प्रथा से अनुष्ठान होता है. बेंड-बाजे के साथ जुलूस भी निकलता है.
बेंडबाजे के पास से ऐसी उम्मीद रखी जाती है कि वे अवसर के यथोचित गानों की धून बजाये. लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता है.
कुछ दिन पहले ऐसा एक जुलूस देखा. जब यह छोटी लडकी दीक्षा ले कर जीवनभर के लिये साध्वी बनने को जा रही थी, बेंड-बाजा इस गाने की धून बजा रहा थाः
‘अनारकली डिस्को चली!’
मुझे बचपन की एक बात याद गयी. हमारे स्कूल में एक कॉमेडियन को आमंत्रित किये गये थे. इन की एक जोक थी.
कन्याविदाय के समय बेंड इस गाने की धून बजा रहा थाः
‘दिल में छुपा के प्यार का तुफान ले चले,
हम आज अपनी मौत का सामान ले चले.’
Pingback: बॅंड-बाजा बंगल [ हास्य-सत्यकथा] : घनश्याम ठक्कर [ओएसीस] | कलापीकेतन